“बाल-मन”
“बाल-मन”
बूंदों की बारात देखकर
मन पुलकित हो जाता,
पल दो पल की जिन्दगी में भी
ओस-कण मुस्कुराता।
कभी सोचता बाल-मन मेरा
रातें क्यों रोती है,
क्या रातों को मनाने के लिए ही
रोज सुबह होती है?
“बाल-मन”
बूंदों की बारात देखकर
मन पुलकित हो जाता,
पल दो पल की जिन्दगी में भी
ओस-कण मुस्कुराता।
कभी सोचता बाल-मन मेरा
रातें क्यों रोती है,
क्या रातों को मनाने के लिए ही
रोज सुबह होती है?