बाल चुभे तो पत्नी बरसेगी बन गोला/आकर्षण से मार कांच का दिल है भामा
( मुक्त छंद)
नायक” दाढ़ी मुडा कर, मूँछ घोटना आप।
निश्चय ही बड़ जाएगी, इज्जत रूपी माप।।
इज्जत रूपी माप बढ़ायी श्रीराम ने।
मूँछ कबहुँ न रखी,दिव्य शिव-हनूमान ने।।
कह “नायक” कविराय, मूँछ तज बन अति भोला।
बाल चुभे तो पत्नी बरसेगी बन गोला।।
इसीलिए मूँछें तजीं ,आप व्यर्थ हैरान।
लेखक से कवि बन गया,मेरे दिल का ज्ञान।।
मेरे दिल का ज्ञान, हुआ आधा, पुनि आधा।
किंतु गृहस्थी की गाड़ी में नहिं है बाधा।
कह “नायक” कविराय, फाड मत स्वयं पजामा।
आकर्षण से मार, कांच का दिल है भामा ।।
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-दिव्य=प्रकाशमान्
-शिव =महादेव (अष्टमूर्ति के अंतर्गत यह सोम-मूर्ति
तथा ब्रह्मस्वरूप हैं)
-भोला=सीदा-सादा
-भामा=स्त्री(पत्नी)
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👉 उक्त दोंनों मुक्त छंदों को मेरी कृति “पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं” में भी पढ़ा जा सकता है।
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पं बृजेश कुमार नायक