Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Feb 2023 · 6 min read

बाल्मीकि रामायण आ रामचरितमानस मे तुलनात्मक अध्ययन।

बाल्मीकि रामायण आ रामचरितमानस के तुलनात्मक अध्ययन।
-आचार्य रामानंद मंडल

श्री राम कथा के तीनटा प्रमुख घटना १. रानी सभ मे पुत्र प्राप्त लेल खीर वितरण २. सीता स्वयंवर वा धनुष यज्ञ आ ३ रावण बध के भेद के तुलनात्मक अध्ययन कैला पर मतभिन्नता पायल जाइ हय।

राजा दशरथ के रानी सभ के गर्म धारण के लेल खीर वितरण के संबंध मे रामायण आ रामचरित मानस मे मतभिन्नता हैय।

बाल्मीकि रामायण के अनुसार।

कौशल्यायै नरपति:पायसार्धं ददौ तदा।
अर्धादर्धं ददौ चापि सुमित्रायै नराधिप:।।२७ ।।

ऐसा कहकर नरेश ने उस समय उस खीर का आधा भाग महरानी कौशल्या को दे दिया। फिर बचे हुए आधे का आधा भाग रानी सुमित्रा को अर्पण किया।

कैकेय्ये चावशिष्टार्धं ददौ पुत्रार्थकारणात।
प्रददौ चावशिष्टार्धं पायसस्यमृतोपमम्।।२८।।
अनुचिन्त्य सुमित्रायै पुनरेव महामति:।
एवं तासां ददौ राजा भार्याणां पायसं पृथक्।।२९।।

उन दोनों को देने के बाद जितनी खीर बची रही,उसका आधा भाग तो उन्होंने पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से कैकेई को दे दिया। तत्पश्चात उस खीर का जो अवशिष्ट आधा भाग था,उस अमृतोपम भाग को महाबुद्धिमान नरेश ने कुछ सोच बिचारकर पुनः सुमित्रा को ही अर्पित कर दिया।इस प्रकार राजा ने अपनी सभी रानियों को अलग अलग खीर
बांट दी।

समझे के लेल –

खीर=१६आना(१रु)
कौशल्या- ८ आना
सुमित्रा -४ आना+२ आना=६आना
कैकेई-२ आना
कुल-१६आना

रामचरित मानस के अनुसार –

तबहिं रायं प्रिय नारी बोलाईं। कौशल्यादि तहां चलि आईं।
अर्द्ध भाग कौशल्यहि दींहा।उभय भाग आधे कर कींहा।

उसी समय राजा ने अपनी प्यारी पत्नियों को बुलाया। कौशल्या आदि सब रानियां वंहा चली आई। राजा ने पायस का आधा भाग कौशल्या को दिया और शेष आधे को दो भाग किये।
कैकेई कहं नृप सो दयऊ।रह्यो सो उभय भाग पुनि भयऊ
कौशल्या कैकेई हाथ धरि।दींह सुमित्रिहि मन प्रसन्न करि।

वह उनमें से एक भाग राजा ने कैकैयी को दिया
शेष जो बच रहा उसके फिर दो भाग हुए और राजा ने उनको कौशल्या ओर कैकेई के हाथ पर रखकर अर्थात उनकी अनुमति लेकर और इस प्रकार उनका मन प्रसन्न करके सुमित्रा को दिया।

समझे के लेल –

खीर -१६आना(१रु)
कौशल्या -८आना
कैकेई -४आना
सुमित्रा -२ आना+२आना=४ आना।
कुल-१६आना।

सभ रानी अपन अपन खीर के खैलन आ गर्भधारण कैलन।बाद मे कौशल्या राम के, कैकेई भरत के आ सुमित्रा लक्ष्मण आ शत्रुधन के जनम देलक।

अइ प्रकार खीर बांटे के प्रक्रिया मे रामायण आ रामचरित मानस मे मतभिन्नता हैय

स्वयंबर वा धनुष्य यज्ञ के वृत्तांत मे महर्षि बाल्मीकि आ संत तुलसीदास मे मत भिन्नता हय!

महर्षि बाल्मीकि के अनुसार –
वीर्यशुल्केति मे कन्या स्थापितेयमयोनिजा।
भूतलादुत्थितां तां वर्धमानां ममात्मजाम्।।१५।।
वरयामासुरागत्य राजानो मुनिपुंगव ।
अर्थात – अपनी इस अयोनिजा कन्या के विषय में मैंने यह निश्चय किया कि जो अपने पराक्रम से इस धनुष को चढा देगा,उसी के साथ इसका ब्याह करूंगा।इस तरह इसे वीर्यशुल्का (पराक्रम शुल्क वाली) बनाकर अपने घर में रख छोड़ा है।मुनिश्रेष्ठ !भूतल से प्रकट होकर दिनों दिन बढनेवाली मेरी पुत्री सीता को कई राजाओं ने यहां आकर मांगा।

तेषां वरयतां कन्यां सर्वेषां पृथिवीक्षिताम्।।१६।
वीर्यशुल्केति भगवन् न ददामि सुतामहम्।

अर्थात -भगवन ! कन्या का वरण करनेवाले उन सभी राजाओं को मैंने बता दिया कि मेरी कन्या वीर्य शुक्ला हूं।(उचित पराक्रम प्रकट करने पर ही कोई पुरुष उसके साथ विवाह करने का अधिकारी हो सकता है)यही कारण है कि मैंने आजतक किसी को अपनी कन्या नहीं दी।

तेषां जिज्ञासमाननां शैवं धनूरूपाहृतम्।।१८।।
न शेकुर्ग्रहणे तस्य धनुषस्तोलनेअपि वा।

अर्थात – मैंने पराक्रम की जिज्ञासा करने वाले उन राजाओं के सामने यह शिवजी का धनुष रख दिया; परंतु वे लोग इसे उठाने या हिलाने में भी समर्थ न हो सके।

यद्यस्य धनुषो राम:कुर्यादारोपणं मुने।
सुतामयोनिजां सीतां दद्यां दशरथेरहम्।।२६।।

अर्थात -मुने! यदि श्रीराम इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा दें तो मैं अपनी अयोनिजा कन्या सीता को इन दशरथ कुमार के हाथ में दे दूं।

तामादाय समंजुषामायसीं यत्र,तद्धनु:।
सुरोपं ते जनकमूचुर्नृपतिमन्त्रिण:।।५।।

अर्थात -लोहे की वह संदूक,जिसमें धनुष रखा गया था, लाकर उन मंत्रियों ने देवोपम राजा जनक से कहा –

इदं धनुर्वंरं राजन् पूजितं सर्वराजभि:।
मिथिलाधिप राजेन्द्र दर्शनीयं यदीच्छसि।।६।

अर्थात -राजन !मिथिलापते! राजेन्द्र! यह समस्त राजाओं द्वारा सम्मानित श्रेष्ठ धनुष है। यदि आप इन दोनों राजकुमारों को दिखाना चाहते हैं तो दिखाइये।

इदं धनुर्वंरं ब्रह्मय्जनकैरभिपूजितम्।
राजभिश्च महावीर्यैरशक्ते पूरितं तदा।।८।।

अर्थात -ब्रह्मण! यही वह श्रेष्ठ धनुष है, जिनका जनकवंशी नरेशों ने सदा ही पूजन किया है। तथा जो इसे उठाने में समर्थ न हो सके,उन महापराक्रमी नरेशो ने भी इसका पूर्वकाल मे सम्मान किया है।

महर्षेर्वचनाद् रामो यत्र तिष्ठति तद्वनु:।
मंजुषां तामपावृत्य दृष्ट्वा धनुरथाब्रवीत्।।१३।।

अर्थात -महर्षिकी आज्ञा से श्री राम ने जिसमें वह धनुष था उस संदूक को खोलकर उस धनुष को देखा और कहा –

इदं धनुर्वंरं दिव्यं संस्पृशामीह पाणिना।
यत्नवांश्च भविष्यामि तोलने पूरणेअपि वा।।१४।।

अर्थात -अच्छा अब मैं इस दिव्य एवं श्रेष्ठ धनुष में हाथ लगाता हूं। मैं इसे उठाने और चढ़ाने का भी प्रयत्न करुंगा।

बाढमित्यब्रवीद् राजा मुनिश्च समभाषत।
लीलया स धनुर्मध्यै जग्राह वचनान्मुने:।।१५।।
पश्यतां नृसहस्त्राणां बहूनां रघुनंदन:।
आरोपयत् स धर्मात्मा सलीलमिव तद्धनु;।।१६।।

तब राजा और मुनि ने एक स्वर से कहा -हां, ऐसा ही करो।मुनि की आज्ञा से रघुकुलनंदन धर्मात्मा श्री राम ने उस धनुष को बीच से पकड़कर लीला पूर्वक उठा लिया और खेल सा करते हुए उस पर प्रत्यंचा चढ़ा दी।उस समय के ई हजार मनुष्यो की दृष्टि उन पर लगी थी।

आरोपयित्वा मऔवईं च पूरयामास थद्धनउ:।
तद् बभन्च धनुर्मध्ये नरश्रेष्ठो महायशा:।।१७।।

प्रत्यंचा चढ़ाकर महायशस्वी नरश्रेष्ठो श्री राम ने ज्योंहि उह धनुष को कान तक खींचा त्योंहि वह बीच से ही टूट गया।

जनकानां खुले कीर्तिमाहरिष्यति मे सुता।
सीता भर्तारमासाद्य रामं दशरथात्मजम् ।।२२।।

मेरी पुत्री सीता दशरथकुमार श्री राम को पति रूप में प्राप्त करके जनकवंश की कीर्ति का विस्तार करेगी

मम सत्या प्रतिज्ञा सा वीर्यशुल्केति कौशिक।
सीता प्राणैर्बहुमता देया रामाय मे सुता।।२३।।

कुशिकनंदन! मैंने सीता को वीर्य शुल्का (पराक्रमरूपी शूल्क से ही प्राप्त होने वाली) बताकर जो प्रतिज्ञा की थी ,वह आज सत्य एवं सफल हो गयी। सीता मेरे लिये प्राणों से भी बढ़कर है। अपनी यह पुत्री श्री राम को समर्पित करूंगा।

रामचरित मानस के अनुसार –

सीय स्वयंबरु देखिअ जाइ।इसु काहि धौंस देइ बड़ाई।
लखन कहा जस भाजनु सोई।नाथ कृपा तव जापर होई।।१।।

चलकर सीताजी के स्वयंवर को देखना चाहिए। देखें ईश्वर किसको बड़ाई देते हैं।लक्ष्मण जी ने कहा -हे गनाथ!जिस पर आपकी कृपा होगी,वही बड़ाई का पात्र होगा ( धनुष तोड़ने का श्रेय उसी को प्राप्त होगा।)।।

रंगभूमि आए दोउ भाई।असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई।।
चले सकल गृहिकाज बिसारी।बाल जुबान जरठ नर नारी।।

दोनों भाई रंगभूमि में आए हैं, ऐसी खबर जब सब नगरवासियों ने पायी,तब बालक,जवान, बूढ़े, स्त्री, पुरुष सभी घर और काम काज को भुलाकर चल दिये।

लेत चढावत खैंचत गाढे।कहीं न लखा देख सबु ठाढ़ैं।।
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा,भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।।

लेते, चढ़ाते और जोर से खींचते हुए किसी ने नहीं लखा ( अर्थात ये तीनों काम इतनी फूर्ति से हुए कि धनुष को कब उठाया,कब चढ़ाया और कब खींचा, इसका किसी को पता नहीं लगा); सबने श्री राम जी को (धनुष खींचे) खड़े देखा
।उसी क्षण श्री राम ने धनुष को बीच से तोड़ डाला। भयंकर कठोर ध्वनि से (सब) लोक भर गये।।४।।

गावहिं छवि अवलोकि सहेली।सिय जयमाल राम उर मेली।।

इस छबि को देखकर सखियां गाने लगी।तब सीताजी ने श्री राम जी के गले में जयमाला पहना दी।।४।।

रावण बध के भेद बताबे वाला मे रामायण आ रामचरित मानस मे मतभिन्नता हैय।

बाल्मीकि रामायण के अनुसार इन्द्र के सारथि मातलि हैय।

अथ संस्मारयामास मालति राघवं तदा।
अजानन्वि किं वीर त्वमेनमनुवर्तसे।।१।

मातलि ने श्री रघुनाथ जी को कुछ याद दिलाते हुए कहा -वीरवर !आप अनजान की तरह क्यों इस राक्षस का अनुसरण कर रहे हैं?(,यह जो अस्त्र चलाता है, उसके निवारण करने वाले अस्त्र का प्रयोग करके रह जाते हैं),।

विसृजास्मै वधाय त्वमस्त्रं पैतामहं प्रभो।
विनाशकाल:कथितो य: सुरै:सोद्धं वर्त्तते।।२।।

प्रभो! आप इसके वध के लिए ब्रह्मा जी के अस्त्र का प्रयोग कीजिए। देवताओं ने इसके विनाश का जो,समय बताया है,वह अब आ पहुंचा है।

स विसृष्टो महावेग: शरीरान्तकर:पर:।
बिभेद हृदयं तस्य रावणस्य दुरात्मनं।।१८।।

शरीर का अंत कर देने वाले उस महान वेगशाली श्रेष्ठ वाण ने छूटते ही दुरात्मा रावण के हृदय को विदिर्ण कर डाला।

रुधिराक्त: स वेगेन शरीरान्तकर:शर:।
रावणस्य हरन् प्राणान् विवेश धरणीतलम्।।१९।।

शरीर का अंत करके रावण के प्राण हर लेने वाला वह वाण उसके खून से रंग कर वेगपूर्वक धरती में समा गया।

स शरो रावणं हत्या रुधिरार्द्रकृतच्छवि;।
कृतकर्मा निभृतवत् स तूणिं पुनराविशत्।।२०।।

इस प्रकार रावण का बध करके खून से रंगा हुआ वह सौभाग्यशाली बाण अपना काम पूरा करने के पुन:विनित सेवक की भांति श्री रामचन्द्र जी के तरकस में लौट आया।

रामचरित मानस के अनुसार रावण के भाई विभीषण भेद बताबे वाला हैय।

नाभिकुंड पियुष बस याकें।नाथ जिअत रावनु बल ताकें।।
सुनत विभिषण बचन कृपाला।हरषि गहे कर बान कराला।।

इसके नाभि कुंड में अमृत का निवास है।हे नाथ! रावण उसी के बल पर जीता है। विभिषण के वचन सुनते ही कृपालु श्री रघुनाथ जी ने हर्षित होकर हाथ में विकराल बाण लिये।

सायक एक नाभि सर सोषा।अपर लगे भुज सिर करि रोषा।
लै सिर बाहु चले नाराचा।सिर भुज हीन रूंड महि नाचा।।

एक बाण ने नाभि के अमृत कुंड को सोख लिया।दूसरे तीस बाण कोप करके उसके सिरो और भुजाओं में लगे।बाण सिरो और भुजाओं को लेकर चले। सिरों और भुजाओं से रहित रूंड (धड़) पृथ्वी पर नाचने लगा।

अइ प्रकार से रावण बध के भेद बताबे वाला मे रामायण आ रामचरित मानस मे मतभिन्नता हैय।

-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी।

Language: Maithili
Tag: लेख
156 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
2407.पूर्णिका
2407.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
मन-गगन!
मन-गगन!
Priya princess panwar
खुदा ने ये कैसा खेल रचाया है ,
खुदा ने ये कैसा खेल रचाया है ,
Sukoon
इश्क इवादत
इश्क इवादत
Dr.Pratibha Prakash
*छाया कैसा  नशा है कैसा ये जादू*
*छाया कैसा नशा है कैसा ये जादू*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
!! हे लोकतंत्र !!
!! हे लोकतंत्र !!
Akash Yadav
मूँछ पर दोहे (मूँछ-मुच्छड़ पुराण दोहावली )
मूँछ पर दोहे (मूँछ-मुच्छड़ पुराण दोहावली )
Subhash Singhai
पाकर तुझको हम जिन्दगी का हर गम भुला बैठे है।
पाकर तुझको हम जिन्दगी का हर गम भुला बैठे है।
Taj Mohammad
यथार्थ
यथार्थ
Shyam Sundar Subramanian
कुछ दर्द झलकते आँखों में,
कुछ दर्द झलकते आँखों में,
Neelam Sharma
अफसोस-कविता
अफसोस-कविता
Shyam Pandey
ईश्वर की महिमा...…..….. देवशयनी एकादशी
ईश्वर की महिमा...…..….. देवशयनी एकादशी
Neeraj Agarwal
देश-विक्रेता
देश-विक्रेता
Shekhar Chandra Mitra
होली कान्हा संग
होली कान्हा संग
Kanchan Khanna
परीक्षाएँ आ गईं........अब समय न बिगाड़ें
परीक्षाएँ आ गईं........अब समय न बिगाड़ें
पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'
पुरखों का घर - दीपक नीलपदम्
पुरखों का घर - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
बस एक कदम दूर थे
बस एक कदम दूर थे
'अशांत' शेखर
छोटी सी प्रेम कहानी
छोटी सी प्रेम कहानी
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
दोयम दर्जे के लोग
दोयम दर्जे के लोग
Sanjay ' शून्य'
*सागर में ही है सदा , आता भीषण ज्वार (कुंडलिया)*
*सागर में ही है सदा , आता भीषण ज्वार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
चोर उचक्के सभी मिल गए नीव लोकतंत्र की हिलाने को
चोर उचक्के सभी मिल गए नीव लोकतंत्र की हिलाने को
Er. Sanjay Shrivastava
देश के अगले क़ानून मंत्री उज्ज्वल निकम...?
देश के अगले क़ानून मंत्री उज्ज्वल निकम...?
*Author प्रणय प्रभात*
कितने कोमे जिंदगी ! ले अब पूर्ण विराम।
कितने कोमे जिंदगी ! ले अब पूर्ण विराम।
डॉ.सीमा अग्रवाल
चलते रहना ही जीवन है।
चलते रहना ही जीवन है।
संजय कुमार संजू
हे पिता ! जबसे तुम चले गए ...( पिता दिवस पर विशेष)
हे पिता ! जबसे तुम चले गए ...( पिता दिवस पर विशेष)
ओनिका सेतिया 'अनु '
दर्द ए दिल बयां करु किससे,
दर्द ए दिल बयां करु किससे,
Radha jha
(7) सरित-निमंत्रण ( स्वेद बिंदु से गीला मस्तक--)
(7) सरित-निमंत्रण ( स्वेद बिंदु से गीला मस्तक--)
Kishore Nigam
💐प्रेम कौतुक-417💐
💐प्रेम कौतुक-417💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
वक्त-ए-रूखसती पे उसने पीछे मुड़ के देखा था
वक्त-ए-रूखसती पे उसने पीछे मुड़ के देखा था
Shweta Soni
Loading...