बालविवाह
मुन्नी कहती है-
मां बाबा बना कर मैंने तुमको भगवान बनाया था
और आपने मुझको ब्याह के जैसे ऋण चुकाया था।
माना कि इस समाज के खातिर तुम मजबूरी के मारे थे ,
लेकिन माँबापा आप तो किस्मत लिखने वाले भगवान हमारे थे।
क्या जाना कि दिन रात में कितनी सिसकाई थी,
गुड्डा गुड़िया खेलने वाले हाथों में चूड़ियां खनकाई थी।
मां जैसी चूड़ियां पहन पहले मैं बहुत इतराई थी,
फिर जाना की मां ने स्वयं ही हथकड़ियां पहनाई थी।
कच्ची कली में बगिया की बचपन हुआ ना पूरा था,
तुम तो समझती मां की मेरा यौवन अभी अधूरा था।
मैं कच्ची गागर-सी थोड़ा तो तप जाने देते,
मेरे कोमल बदन को थोड़ा तो पक जाने देते।
ओ मां बाबा यह दोष न मेरा- तेरा था,
बाल विवाह के अंधियारे का ना कोई सवेरा था।
सजाने के लिए मेरे तन का श्रृंगार तो पूरा था ,
पर यह बदन बचपन की किलकारी के बिना अधूरा था।
नन्हे नन्हे हाथों में 2 ग्राम सिंदूर समाया था,
नए-नए रिश्तो का बोझ कंधो पर आया था।
मैं सहमी थी, सिस्काई थी।
तुम्हारे पल्लू में छिपने आई थी,
फिर समझ आया कि मां तुमने ही तो मेरे हाथों में मेहंदी सजाई थी।
चाची, नानी, मामी, बुआ सब ने गाना गाया और ढोलक बजाई थी,
उस दिन तुम्हारी अपनी बिटिया तुमसे हुई पराई थी।
शायद यह बात किसी को समझ ना आई थी,
डोली के भेस में मानो मेरे लिए अर्थी सजाई थी।
-करिश्मा चौरसिया