बारिश
।।बारिश।।
वो रिम-झिम, बरसती बारिश,
जैसे कुछ तान सुनाती हो बारिश,
वो बचपन की मस्ती, वो कागज की कश्ती,
फिर से याद दिलाती है, बारिश।
वो बेफिक्र होकर, बारिश में भीगना,
फिर घर आकर कुछ, बहाना बनाना,
फिर उन्ही यादों में, ले जाती है बारिश।
मेरे घर आँगन में वो, बारिश का बरसना,
जमकर हमारा मस्ती करना, वो
मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबु,
फिर उसी बचपन मे, ले जाती है बारिश,
बारिश वही है , पर मेरा मकान बदल गया,
उसमे रहते-रहते, मेरा मिजाज बदल गया।
न रही उसमे बारिश के लिये जगह,
मेरे खिड़कियों के सिसो से टकराकर,
वो मुझे बुलाती हुई वापस चली जाती है।
आज भी बारिश की बूंदे मुझे बुलाती है,
फिर उसी बचपन की याद दिलाती है।
– रुचि शर्मा