बारिश और तुम्हारी यादें
ये बारिशें तो बरस के चली जाती हैं ,
लेकिन ये पीछे छोड़ जाती हैं तो तुम्हारी यादें ,
इन बारिशों की बूंदों से तेरी हंसी की खनक बहुत मिलती है ,
सोंधी मिट्टी की खुशबू से तेरी महक बहुत मिलती है l
खुदा या गीली मिट्टी में तेरे पैरों के निशाँ तो रहते हैं
लेकिन ये क्योंकर बेवफ़ा हैं की तेरा पता न देते हैं l
मेरे साथ-साथ मेरी आंखे भी भीग चुकी हैं इस बारिश में
एक काश एक टीस के साथ उठता है की तुम आओगे
और कहोगे – ” अब कभी न जाने का साथ दूंगा
तुम्हारी हर बारिश का शरीक़ मैं रहूँगा
तुम्हारे मेहँदी लगे हाथों में मेरे मज़बूत हाथों का मुक़म्मल साथ होगा ” l
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’