बाबूजी
हाथ पकड़ कर चलना सिखा दुनिया के सिंघासन से ऊँचे कंधो पर बैठ जिंदगी के ख्वाब सजाये !!
ऊँगली पकड़ गुरु के द्वार आये मेरी खुशियों की खातिर करते सारे जतन उपाय !!
खुद भूखा रहना भी भाये मैं भूखा ना रहूँ पल प्रहर दिन रात मेहनत कर मेरी हर ख्वाइस पूरा करते !!
मेरे जिद्द पे सूरज चाँद जमी पर लाने की प्राण पण से कोशिश करते !!
यदि मुझे हो कोइ भी तकलीफ दुनिया के हर मंदिर मस्ज़िद चर्च गुरुद्वारा जाते!!
दुआ मांगते डॉक्टर वैद्य हाकिम
मेरे हर कदमों की आहाट में अपने सपनों कि हकीकत का भविष्य देखते!!
राम परशुराम श्रवण मेरी काया कर्म में का वर्तमान समझते।।
मेरे गुरुओ से मेरी शिक्षा दीक्षा और परीक्षा परिणाम की व्याख्या का भविष्य जानते।।
कभी कहीँ मायूस होते माँ से अपने अन्तर मन के भावों से भारी मन से चर्चा करते ।।
कहते मेरी औलाद मेरी नज़रो का नूर नज़र लखते जिगर अरमानों उम्मीदों का अवनि अम्बर ।।
परिवरिस में कोइ खोट ना हो मेरे अनजाने भी किसी दुष्कर्म पाप की छाया ना इसको छु पाय !!
मेरे सद्कर्मों से ही साहस शक्ति संबल अवलम्बन की हस्ती हद फौलाद मेरी औलाद हो।।
आत्मा का परम शक्ति का अंश कुल वंश का मर्यादा मान अभिमान बने।।
जीजस अल्लाह ईश्वर गुरुओं का तेज उर्जा आर्शीवाद का राष्ट्र समाज का मूल्य मूल्यवान बने।।
मेरा पिता बाबू का मुझसे इतनी चाहत अरमानों का आश विश्वाश लिये लम्हा लम्हा सुबह शाम दिन रात ।।
दिन रात मेहनत करता खुद चाहे भूखा जाए मुझे भूखा नहीं रहने देता ।।
मेरी आँखों के आँसू से मेरा बाबू आबे से बाहर हो जाता मेरी मुस्कानों की खातिर दुनियां की हर मुश्किल चुनौतियों से टकरा जाता !!
मेरे चेहरे की खुशियों से दुनियां भर की दौलत पा जाता।।
अपने कंधे पर बैठाता गॉव की गली गली नगर की डगर डगर शहर बाज़ार मेला हॉट चौराहों पर ले जाता ।।
राह में हर मिलने वाले से गर्व से चौड़ी छाती मूंछों पर हाथ फेरते कहता यह है मेरा राज दुलारा ।।
मेरा नाम को करेगा रोशन दुनिया की अरमानों का अंदाज़ मेरी ताकत शक्ति सहारा।।
जब कभी क़ोई मेरी शरारत की शिकायत लेकर बापू के पास आता बापू बिना कुछ सुने ही आबे से बाहर हो जाता ।।
कहता मेरा बेटा अब्बल अनूठा सब इसकी प्यार से तारीफ करते तुम कैसे कहते हो मेरा बेटा हैँ खोटा।।
मर्यादा का मान है कृष्ण और राम है नादानी अठखेली बचपन की पहचान शान है।।
जब शिकयत करने वाला हार मानकर चला जाता !!
बापू बड़े प्यार से सर पर हाथ फेरता पूछता क्यों आई तेरी शिकायत !!
तूने कौन सा काम किया मेरा नाम बदनांम किया।।
मैं कितना भी इधर उधर की बात करू बापू समझ जाता सच्चाई ।।
अपने भावो को समेटे मुझे अपने दामन में लपेटे कहता बापू जिंदगी में सच्चा इंसान बन ना कर नादानी ना नादान बन ।।
सत्य मार्ग को आत्म साथ कर् कठिन डगर हैं जीवन की मत सस्ता इंसान बन।।
शरारते बचपन की मन मोहक अच्छी सबको लगती ना हो कोइ आहत दुखी मत ऐसा खिलवाड़ कर।।
मिले दुआए सबकी सबका आशिर्बाद मिले सबकी चाहत की दुनियां का तुझको वरदान मिले।।
पिता कर्म पुत्र वरदान पिटा धर्म तो पुत्र संस्कृत संस्कार!!
पिता अनंत परम्परा का पुरुषार्थ पुत्र पराकम की परिभाषा परिणाम !!
पुत्र वर्तमान पिता वर्तमान की बुनियाद।।
घुटनों के बल चलता पैरों पर खड़ा होना सिखलाया चलना सिखलाया।।
दुनियां के दस्तूर रिश्ते नातों से परिचित करवाया।।
वेद शास्त्र ज्ञान विज्ञान राजनीती धर्म कर्म मर्म मर्यादा का अध्ययन करने के लिये अपनी छमता में दुनियां का बेहतर शिक्षा का मंदिर विद्यालय विश्वविद्यालय गुरुकुल उपलब्ध् कराया।।
जीने का अंदाज़ जीवन के आगाज़ का हुनर इल्म सिखाया!!
जो भी था उनके पास सौप दिया बापू ने अक्षुण अक्षय विरासत बेटे के हाथ।।
जीवन के संघर्षों के हर दांव पेंच हर जुगत जुगाड़ की सिख दी!!
जीवन का बने विजेता बेटा ले संकल्प सत्य का साथ।।