बारिश का पानी
ग़ज़ल
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हर कोई बदहाल हुआ है सावन में।
पानी जैसे काल हुआ है सावन में।।
रोज कमाकर खाने वाला कुनबा तो,
रोटी बिन बेहाल हुआ है सावन में।
एक बरस क्यों चुप्पी साधे बैठा था?
मेंढक जो वाचाल हुआ है सावन में।
कोई भीग रहा है मस्ती में देखो,
कोई खस्ताहाल हुआ है सावन में।
खेतों के सँग सारी पूंजी डूब गई,
कितना आज मलाल हुआ है सावन में।
कोई रोक रहा है बारिश का पानी,
फिर से एक बवाल हुआ है सावन में।
इतना पानी बरस रहा है जोरों से,
पर्वत भी पाताल हुआ है सावन में।
कबतक सड़कों के गड्ढे भर जाएंगे?
फिर से वही सवाल हुआ है सावन में।
फुरसत में ‘आकाश’ जहाँ हम सोते हैं,
घर वो पोखर-ताल हुआ है सावन में।
– आकाश महेशपुरी
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
मो- 9919080399
(“बरसात” – काव्य प्रतियोगिता)