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7 Jul 2022 · 1 min read

‘बादल’ (जलहरण घनाक्षरी)

मेघ की बारात चली, गगन में गली गली,
दिनकर दिखे नहीं, धूप जाने है किधर।

दामिनी लपक चले, चाल वो चपल चले,
काली घटा मुख ढले, डोल रहा जलधर।

मयूर मगन वन, लाए हैं सौगात घन,
लग रहा ऐसे मन, रात आयी है उतर।

मेघ राग बज रहा, जग सारा सज रहा,
बाल नाव तर रहा, अंगना में घर-घर।।1

लेते मेघ नाना रूप, कभी छाँव कभी धूप,
वृद्ध बाल वृक्ष कूप, कभी झलती चंवर।

भाप को लपेटकर, रज कण समेटकर , तेज चाल चलकर, बरसे कड़ककर।

मेघ उठे घनघोर, खींच ली हवा ने डोर, पादप मचाते शोर, रोये घन झर-झर।

हो रहा खुश किसान, खूब होगा खेत धान,
भेक छेड़ बैठा तान, फैल गए कीट पर।।2

-लेखिका-गोदाम्बरी नेगी
(हरिद्वार उत्तराखंड)

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 525 Views
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