बादलों की, ओ.. काली..! घटाएं सुनो।
बादलों की, ओ.. काली..! घटाएं सुनो।
आ के’ माटी की’ सारी व्यथाएं.., सुनो।
दम्भ स्पंदन पे कैसे….? हृदय को हुआ,
मुस्कुराती रहीं…….., कोशिकाएं सुनो।
चाप भृकुटी से’ अद्भुत बनाए ही’ क्यों ?
जो झुकीं चंद्र षोडश….., कलाएं सुनो।
पाश उस पर, मैं कैसे कसूँ रूप का…?
स्वर्ग की मोहिनी……., अप्सराएँ सुनो।
प्रेम का बोध विस्तृत……, करा दो मुझे,
पेड़ पौधों से लिपटी……., लताएं सुनो।
मन अगर है व्यथित हो हृदय भी द्रवित,
मिल के बैठो…., पुरातन कथाएं सुनो।
प्रेम, कौतुक, समर्पण व निष्ठा यहाँ….!
संस्कारों की लम्बी…….., प्रथाएं सुनो।
त्याग स्वामित्व दो….., खुश रहोगे सदा,
अनुगतों की कभी……, प्रार्थनाएँ सुनो।
मुझमें’ अनुपात मेरा व उसका है’ क्या.?
पूछ लो….., रक्त से…, वाहिकाएँ सुनो।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊