बात खो गई
एक ग़ज़ल
कहते कहते बात खो गई
उसने कहा कि रात हो गई
रात की तन्हाई में अकेले
करवटें ही हयात हो गई
यादों के झरोखे से आती हवा
मरहम नहीं आघात हो गई
ये ठंड अब बर्दास्त नहीं होती
गिनती भी तो अशरात हो गई
दिख रहा सही सलामत सबको
हालत ए जिस्म क़नात हो गई
देख पाऊँ दूर तक तेरा साया
पहले ही दृष्टि की मात हो गई
पल्लू के छोर पर बँधी है गाँठ
जो अब तक एहतियात हो गई
लाख चाहकर भी ढूँढू कैसे
तू मौन मुझसे हठात हो गई
मेरे जेहन में अंकित चित्र सी
बिना कलम के दवात हो गई
उम्र तो मेरी भी ढल ही गयी थी
तू पहले ही शब-ए-बारात हो गई
एक मधुर आवाज ने झिड़का
उठ भी जाओ प्रभात हो गई
मैंने तो दर्द लिखा था दिल का
जिंदगी अब तो खैरात हो गई
कहते कहते बात खो गई
उसने कहा कि रात हो गई
भवानी सिंह ‘भूधर’
बड़नगर , जयपुर