बाकी है
उल्फ़तों की डगर बाकी है |
जुल्म़तो का कहर बाकी है |
मुद्दतों बाद मिलने आयी,
चाह अब भी उधर बाकी है |
हाथ माँ ने रखा जब सर पर,
उस दुवा का असर बाकी है |
मंजिलें दूर हैं क्यों अब तक,
पत्थरों पर सफ़र बाकी है |
हो गयी शाम उम्मीदों की,
रात है ये, सहर बाकी है |
क्यों है शहरों में सन्नाटा अब,
ज़िन्दगी की ख़बर बाकी है |
खत्म “अरविन्द” ना हो किस्सा,
इस कलम का हुनर बाकी है |
✍️अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०