बांध प्रीत की डोर…
बांध प्रीत की डोर…
बांध प्रीत की डोर राम संग जीवन मुझको जीना है
अब मेरे भगवन मुझको बस तुझमें ही तो रमना है
छल कपट और राग द्वेष से सदा मुझको रखना तुम दूर
मुझको तो अब अपने प्रभु राम के रंग में रंगना है
जिसको देखो हर कोई यहां बस झूठी शान में जीता है
पर उपकार की कौन कहे अपनों से ही ईर्ष्या करता है
जान गया हूं अब मैं शक्ति नाम की आपके प्रभु राम जी
सारे दुर्गुण अपने भीतर के ये सेवक आपको सौंपता है
इति।
इंजी.संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश