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12 Jan 2022 · 1 min read

बहुत दिनों से

बहुत दिनों से
कुछ लिखा नहीं मैंने
सूख गई है कलम की स्याही
या सूख गए दिल के जज्बात
रूठ गई बरसातें
बदल गए हालात
कुछ लिखा नहीं मैने
बहुत दिनों से।

छम छम बरसते बादल
महकती फिजायें
नीला आकाश
खिल खिलाते इठलाते झरने
खामोश क्यों हुए
कुछ लिखा नहीं मैने
बहुत दिनों से।

कुछ भी छू न पाया
मन को
नहीं झंकृत कर पाया
हृदय वीणा को
या फिर दिल ही
प्रवासी हो बैठा
सुख दुख के अवसादों से
बनवासी हो बैठा
कुछ लिखा नहीं मैने
बहुत दिनों से।

डॉ विपिन शर्मा

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 340 Views

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