बहुत दिनों से
बहुत दिनों से
कुछ लिखा नहीं मैंने
सूख गई है कलम की स्याही
या सूख गए दिल के जज्बात
रूठ गई बरसातें
बदल गए हालात
कुछ लिखा नहीं मैने
बहुत दिनों से।
छम छम बरसते बादल
महकती फिजायें
नीला आकाश
खिल खिलाते इठलाते झरने
खामोश क्यों हुए
कुछ लिखा नहीं मैने
बहुत दिनों से।
कुछ भी छू न पाया
मन को
नहीं झंकृत कर पाया
हृदय वीणा को
या फिर दिल ही
प्रवासी हो बैठा
सुख दुख के अवसादों से
बनवासी हो बैठा
कुछ लिखा नहीं मैने
बहुत दिनों से।
डॉ विपिन शर्मा