** बहाना ढूंढता है **
** गीतिका **
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आज वह कोई बहाना ढूंढता है।
गुनगुनाने को तराना ढूंढता है।
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फिर खिला है फूल बगिया में अकेला।
जुल्फ में सुन्दर ठिकाना ढूंढता है।
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कर सका है सत्य पथ का अनुसरण जो।
एक दिन उसको जमाना ढूंढता है।
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शाम को हर अजनबी इस शहर में भी।
रात भर का इक ठिकाना ढूंढता है।
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मेहनत से ही मिलेगी मंजिलेँ सब।
मुफ्त का फिर क्यों खजाना ढूंढता है।
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ठोकरेँ खाकर जमानें की थका सा।
फिर वही साथी पुराना ढूंढता है।
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धूल धूएं से भरे वातावरण में।
पंछियों का चहचहाना ढूंढता है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी, हिमाचल प्रदेश