बहर हूँ
सर्द-मेहरी ओ फ़र्द अजब- तर हूँ
ना होना था म’गर सर- ब – सर हूँ
मुझे रंज के मुआफ़ीक तोलने वालों
बदमाशियों का मैं शफ़क़ अख्तर हूँ
हो तुम शम्स ओ क़मर गुलरू रु तो क्या
मैं भी इस दौर का उम्दा अर्बाब-ए-हुनर हूँ
कहाँ तक मुझको रोक कर रखोगे हुकुम
इंक़लाब गूँजता हुआ मैं पुरा अनल-बहर हूँ
उफ़ क्या सितम है वहशत ए सुखन का कुनु
खुद हि बीमार हूँ खुद से खुद हि इक फहर हूँ