बस फेर है नज़र का हर कली की एक अपनी ही बेकली है
बस फेर है नज़र का हर कली की एक अपनी ही बेकली है
बस ये फेर है नज़र का
काँटों के बीच है रहती
हर कली की ये एक
अपनी ही बेकली है
आसाँ नहीं है कली के
किस्मत का फैसला भी
खिलने से भी पहले
टूटतीं भी बहुत हैं
कुछ देव धाम जातीं
तो कुछ नगरवधू की शोभा
जलना जिसे लिखा है
उनका शमशान है ठिकाना
आरम्भ से अपने अंत तक
जो खिलती पौधों ही पे अपने
काँटों के बीच रह कर भी
ख़ुश किस्मत बस वही कली है