बस करो, कितना गिरोगे…
बस करो, कितना गिरोगे ?
पाप कितने सिर धरोगे ?
जुल्म ढाकर निर्बलों पर,
कर रहे क्यों बात खोटी ?
लट्ठ ले यम आ गया तो,
खींच लेगा खाल मोटी।
क्या फलेगा पीढ़ियों को,
इस तरह उत्कोच लेना ?
कर रहे जो कर्म बदतर,
फल-कुफल क्या सोच लेना।
लूट के धन से भला यों
भर तिजोरी क्या करोगे ?
झूठ का रस्ता चुना तो,
कर्म में ही झोल होगा।
बेगुनाही का तुम्हारी,
फिर न कोई मोल होगा।
एक ही अपकर्म केवल,
जिंदगी भर शोक देगा।
क्यों मिले अपवर्ग इसको,
धर्म आ झट रोक देगा।
साथ जाएगा कहो क्या,
कूच जब जग से करोगे ?
बस करो, कितना गिरोगे ?
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद.( उ.प्र. )