बस इतनी सी अभिलाषा मेरी
चाँद बनकर मुस्कराऊँ
सूर्य सा मैं ओज पाऊं
पुष्प बन खुशबू बिखेरूं
सालिला का कल – कल संगीत हो जाऊं
बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….
पक्षियों का कलरव हो जाऊं
पवन का मद्धिम वेग पाऊं
बालपन मुस्कराहटों से परिपूर्ण
यौवन को संस्कारों से सजाऊं
बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….
पेड़ों पर कोंपल बन निखरूं
चन्दन सा मैं पावन हो जाऊं
गीत बन निखरूं मैं राष्ट्रहित
अम्बर सा विशाल ह्रदय पाऊं
बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….
लड़की बन निखरूं धरा पर
प्रेम का समंदर हो जाऊं
सुसंस्कृत माँ बनकर
संस्कारों का मैं विस्तार हो जाऊं
बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”