बस्ते का बोझ
बस्ते का बोझ
आप हम सब जानते हैं ,
बच्चे बोझ उठाते हैं,
मजबूरी बनी हमारी ,
पढाना जो चाहते हैं ।
शासन बनाता योजना ,
बच्चों का पढना लिखना ,
भूल जाते उम्र क्या है ,
यही तो आज बिडंबना ।
बच्चे जब बोझ उठाते,
बस्ते उठा नहीं पाते ,
माँ बाप देते सहारे ,
मनहि मन में बुदबुदाते।
निजी संस्था की कमाई,
ज्यादा पुस्तकें चलाई,
साधन और सुविधा बता,
करते हैं खूब लुटाई।
राजनीति का अब मुद्दा ,
बस्ता कम करने वादा,
वही तो है वो लोग सब,
बस्ते करते हैं ज्यादा।
निजी व शासकीय शाला,
अंतर ऐसा कर डाला,
आकर्षक लगते हैं निजी,
शासकीय अब गौ शाला।