बस्तर दशहरा
सारी भाषाएँ क्यूँ ना पढ़िए
फिर भी अधूरा ककहरा,
जब तलक ना देखें हों आप
बस्तर का दशहरा।
दुनिया का यह अनोखा पर्व
पूरे पछत्तर दिन चलता,
होते न रावण का पुतला दहन
माँ दंतेश्वरी को पूजती जनता।
परगनिया मांझी मुकद्दम कोटवार
व्यवस्था में जुट जाते,
खुद से ही प्रेरित हो करके लोग
बस खींचे चले आते।
पाट- जात्रा से शुरुआत करके
गाँवों से लकड़ियाँ लाते,
सिरहासार में डेरी गड़ाई कर
विशाल भव्य रथ बनाते।
काँटों के झूले पर बैठ कुँवारी कन्या
देती जब पर्व की स्वीकृति,
जो क्वांर मास की अमावस्या को
कांछन-गादी से शुरू होती।
जोगी बिठाई की रस्म अदा कर
रथ की परिक्रमा कराते,
राजमहल के सिंह- द्वार के पास
अन्त में खड़ा कराते।
भीतर रैनी और फिर बाहर रैनी
हर परम्परा निभाते,
सिरहासार में मुरिया दरबार संग
पर्व सम्पन्न हो जाते।
(मेरी सप्तम काव्य-कृति : ‘सतरंगी बस्तर’ से..)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक
बस्तर जिनकी कर्म-भूमि रही
5 किस्तों में 15 वर्षों तक।