बसंत
पदांत- हुआ वसंती
समांत- अन
जाने को है शरद, माघ का सावन हुआ वसंती
रुत बसंत की भोर, आज मनभावन हुआ वसंती
बौर खिले पेड़ों पर, लहराई गेहूँ की बाली,
मनुहारों, पींगों की रुत मनमादन हुआ वसंती
आहट होने लगी फाग की, पवन चली मधुमासी
चढ़ने लगा रंग तन-मन पर, दामन हुआ वसंती
डाल-डाल पर फूल खिले, ली अँगड़ाई कलियों ने
नंदन कानन, अभयारण्य’, वृन्दावन हुआ वसंती
‘आकुल’ आया वसंतदूत, ले कर संदेशा घर-घर,
करने अंत विद्वैष-वैर, घर आँगन हुआ वसंती.
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माघ का सावन- मावठ, पींग- मौज, झूलना, लहर
मनमादन- कामदेव रूपी मन, वसंतदूत- कोयल