बसंत
छाया है प्रकृति पर यौवन
गीत गुनगुना रहा मस्त पवन
सतरंगी चूनर में सजी वसुधा
चहुं ओर फैली कमनीय छटा
पीत वरण खेतों को भा रहा
सरसों भी झूमता लहरा रहा
कोयल डाली डाली गा रही
कुहू कुहु का मधुर तान सुना रही
चंचरिक चहचहाते, विहग गाते
मनोरम,मनभावन ये दृश्य सुहाते
तारूण्य से आनंदित सरसों ,अलसी
मादकता से भरी भरी आम्रमंजरी
रसीली महुवा रस से भरी भरी
रसिकों को आमंत्रण दे लुभा रहीं
ऋतुराज संग झूम, गा रहा मधुबन
बसंत संग प्रेमालाप कर रहा उपवन
मृदुल,मंजुल कुसुम कली खिल रही
आसक्त ऋतुराज संग संग डोल रही
सुरम्य, कमनीय ’नूतन’परिधान
नवीन पल्लव,विपुल प्रसून उद्यान