बसंत
★ बसंत ★
चारों ओर फूल खिले, रंग से सुगंध मिले ।
धीमी धीमी हवा चले, आया ये बसंत है ।।
आम बौर भा रही है, कोयलिया गा रही है ।
सखि!परदेस जाय , बसे मेरा कंत है ।।
खेत हरियाली भरे , झूम झूम हरे हरे ।
सुंदरता फैली ऐंसी , जिसका न अंत है ।।
सरिता का नीर धीर , छोड़ बहता है तीर ।
शोभा भू से नभ तक , दिखे न अनंत है ।।
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– सतीश शर्मा, नरसिंहपुर
( मध्यप्रदेश )