बसंत की बहार
सुगन्धित हवाएं चलने लगी है,
लगता है बसन्त आ रही है।
वृक्ष के लताओं में कोमल पंखुड़ियां निकल रही है
फूल खिल रहे है ,मन चहक रहा है।
मंद हवाएं फैला रही है ..
पक्षियो की कलरव ध्वनि सुनाई पड़ रही है
ओस सी नमी धरा पर बिखर रही है ।
हृदय में करुणा के वंग्य उमड़ रहे है
अम्बर नीले रंगों से सुशोभित कर रही है।
चल रहा हूँ प्रातः नग्न पग-पग कोमल मिट्टी पर
शाम ढल रही है ,सूरज किरणों के आशाओं पर
वातावरण चारो ओर दृश्य दिखा रहा है ,लगता है बसन्त आ रही है।
आंगन के खलियानों पे तितलियों का आना और पुष्पो में भवरो का मंडराना तन को झँज्जोर कर रही है ।
सुगन्ध सी हवाएं चल रही है लगता है बसन्त आ रही है।…….
★प्रस्तुत कविता में कवि ‘प्रकाश जी’ कहते है कि जब बसंत ऋतु का आगमन होता है,तो हमारे चारों ओर का वातावरण खिल उठता है। मन और तन दोनों को सुख प्रदान करती है। यह पँत्तिया कवि ने प्रकृति के साथ रहकर अनुभव के साथ लिखी गयी है ।।।