बवाना की आग
“बवाना की आग”
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बवाना की आग
सब जल गया
बची सिर्फ
राख ही राख
कुछ बेक़सूर लाशें
कुछ लाचार सिसकियाँ
दमघोटू आवाज़ें
स्याह दीवारें
किसे पुकारें
कुछ कान में हुई फुसफुसाहट
कुछ चिल्लाये,चीखे,दहाड़े मारें
निकाली किसी ने भोथरी तलवार
निकाली किसी ने ज़ंग लगी कटारें
हुआ यूँ शुरु वाक्युद्ध
लगी बोली हर लाश की
कोई कहे पचास हज़ार
कोई कहे पाँच लाख की
उग आये रिश्ते कहीं से
लोग भयभीत हैं जब
गुज़रते उस गली से
जले हुये कारख़ानों से
ख़ामोशी से,सांय सांय से
सीत्कारों से,घुटी घुटी पुकारों से
कोई आस नहीं सरकारों से
किसने किया अपराध
ये कौन माने?
कैसे लगी ये आग
भला अब कौन जाने?
सेक लीं सबने
अपनी अपनी रोटियाँ
क्या बुझेगी कभी
उसके पेट की आग
कौन जाने?
आग अभी भी नहीं बुझी
आग है अभी तक लगी
आग अब भी धधक रही है
दिल की लपटें लपक रही हैं
आँखों में पानी बचा नहीं है
आग चाहे बुझ भी जाये
धुँआ अब भी उठ रहा है
कोई बवाना सुलग रहा है
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राजेश’ललित’शर्मा