बर्फ़ीली घाटियों में सिसकती हवाओं से पूछो ।
बर्फ़ीली घाटियों में सिसकती हवाओं से पूछो,
तपिश सूरज की यादों में आ, सहलाती है कैसे।
अँधेरी रातों में स्तब्ध आसमां की चीख़ों को सुनो,
टूटते तारे की जुदाईयाँ, उसे तड़पाती हैं कैसे।
पर्वतों की गोद में रिसती, जलधाराओं से पूछो,
नदी बनकर वो किनारों से, छिलती जाती है कैसे।
ठहरे समंदर में सफर करती, लहरों की सुनो,
चाहतें साहिलों की उसे, मौत में मिलाती हैं कैसे।
रूखे पतझड़ों में सिहरते, दरख़्तों से पूछो,
गिरते पत्तों की मजबूरियाँ उसे, रुलाती हैं कैसे।
सावन में आँखों से बरसती, बारिशों की सुनो,
जख्मी यादों की सरगोशियां, उसे जलाती हैं कैसे।
बेजान दिलों में दहकते, सोये अरमानों से पूछो,
ये ज़्यादतियां लक़ीरों की, हमें हमसे चुराती हैं कैसे।