बर्चस्ववादी संस्कृति बनाम हाशियाक समाज उर्फ पचपनिया संघर्ष।
बर्चस्वबादी संस्कृति बनाम हाशियाक समाज उर्फ पचपनिया संघर्ष।
-आचार्य रामानंद मंडल
मिथिला में बर्चस्वबादी समाज यानि ब्राह्मणवादी समाज, हाशियक समाज यानि बंचित समाज अर्थात् रार,सोलकन (इ नामांकरण ब्राह्मवादी संस्कृति के देन अछि ) वा ओबीसी पर वर्तमान में भी सांस्कृतिक सामाजिक स्तर पर बर्चस्व बनैले अछि।मिथिलाक संस्कृति उच्च नीच पर आधारित अछि। जनकवि बैधनाथ मिश्रक अनुसार सुच्चा मैथिल-मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ अछि।इ दूनू मिल कैं ८०८वर्ष मिथिला पर राज कैलन अछि।बाभन राजा से मिलकै मैथिली के शोषक के भाषा बनैलेन आ इ शोषित बंचित के भाषा न बन पायल।साथै सत्ता, साहित्य आ सांस्कृतिक प्रतिष्ठान पर आई तक बर्चस्व बनैले अछि।
लिंग्विंस्टिक सर्वे आफ इंडिया में मिथिला पर गिरियर्सन अपन विचार प्रकट करैत लिखैत अछि कि मिथिला एकटा प्राचीन इतिहास वाला देश अछि जे अपन परम्परा के आई तक बकरार राखने अछि।अखनौ इ भूमि ब्राह्मण एकटा वर्गक आधीन आ बर्चस्व में अछि।जे असाधारण रूप सं सत्ता आ कायदा कैं बकरार राखैं के दर्प स चूर अछि।
सैकड़ो साल सं मिट्टीक ई टुकड़ा पर बहुत गर्व करैत रहल अछि।आ उतर,पूरब आ पश्चिम सं लगातार आक्रमण कैं झेलैत ई अपन पारंपरिक विशेषता बनौने रखने अछि।व अन्य राष्ट्रीयताक लोक सभ के समान भाव सं नै अपनावैत अछि।
केदारनाथ चौधरी आबारा नहितन में लिखैत अछि जे रेणु जी अप्पन एकटा भेंट में हमरा बतलैनन कि मैथिली भाषाक क्षेत्र संकुचल,समटल आ एकटा विशेष जातिक एकाधिकार में अछि।
राजनीतिशास्त्रीक विचार अनुसार मिथिला में दू तरहक संस्कृति अछि।एकटा बाभन कायथक संस्कृति आ दोसर गैर बाभन कायथक संस्कृति अछि। उदाहरण के लेल जनेउ, शादी ब्याह आ अन्य शुभ अवसर पर पाग पहननाइ, मधुश्रावणी,कोजगरा,नव बधुकैं टेमी से दागक प्रथा, विधवा विवाह निषेध प्रथा ,शुभ अवसर पर मांसाहार भोजन शामिल अछि। जौं कि इ सभ प्रथा गैर बाभन कायथक संस्कृति में नै अछि।
पं गोविन्द झा लिखैत छथि जे मिथिला में दूटा समाज अछि।जे एक दोसर से अपरिचित आ अंजान छथि।
बोली आ भाषा साहित्य कैं प्रश्र अछि। बिल्कुल अलग अछि।बाभन आ कायथ अपन मैथिली के शुद्ध आ मानक मानैत अछि।जे पाणिनि के व्याकरण जेना कठिन अछि।
आ बंचित समाज के मैथिली कैं पश्चमी मैथिल यानी बज्जिका, दक्षिणी मैथिली यानी अंगिका,पुरबी मैथिली यानी ठेठी आ रार भाषा मानैत अछि।ज्योंकि बज्जिका आ अंगिका में भाषा साहित्य के रचना भे गेल अछि।बज्जिका,अंगिका के सिद्ध कविजन के पदों के प्रयोग बर्णरत्नाकरमें ज्योतिश्वर (१३२४)कैले अछि। बाबजूद वै बज्जिका, अंगिका के मैथिली कैं भाषा नै, बोली मानके छांटि देल जाइत अछि। एकटा बज्जिका साहित्यकार अपन रचल पोथी लेके मैथिली साहित्य ,अकादमी गेला परंच रचना कैं मैथिली नै मानके लौटा देल गैल।
बाभनवादी बर्चस्व मिथिला के बंचित समाज के बौद्ध तथा कबीर साहित्य से अपरिचित राखै में कोनों कसर नै छोड़ैत अछि।तै बंचित समाज गैर ब्राह्मण साहित्य आ संस्कृति सं अनजान छथि। ब्राह्मण वर्ग अपन साहित्य आ संस्कृति के बल पर बंचित समाज कैं मानसिक गुलाम बनैले अछि। शास्त्र पुराण जेका मैथिली साहित्य भी ब्राह्मणक महिमा से भरल अछि।इनकर साहित्य में बंचित समाज कैं अपना जमाने के प्रसिद्ध मैथिली गायक पं मांगैन खबास, साहित्यकार फणीश्वरनाथ नाथ रेणु, मिथिला के स्वांतत्र्य प्रथम शहीद रामफल मंडल , साहित्यकार अनूप मंडल शहीद जुब्बा सहनी, शहीद पूरण मंडल आ शहीद मथुरा मंडल के कोई चर्चा नै अछि।
लेखक सह पत्रकार अरविंद दास अपना एकटा आलेख में लिखैत छथि कि इक्कसवीं सदी कैं दोसर दशक में भी मैथिली भाषा साहित्य में बाभन आ कायथ के ही उपस्थिति दिखाई देत अछि। मैथिली भाषा के में हाशिए पर के लोग जिनकर भाषा मैथिली अछि अदृश्य अछि।
इतिहासकार पंकज कुमार झा लिखैत छथि आधुनिक कालि में खास आजादी के बाद विद्यापति गौरवशाली मैथिल संस्कृति के प्रतीक चिन्ह बन के उभर लैन अछि।
अइ आधार पर मिथिला में दूं रंग के मैथिल अछि एगो बाभन आ दोसर सोलकन। मैथिली भी दूं रंग के एगो बाभन कैं मैथिली आ दोसर सोलकन के मैथिली। संस्कृत के नाटक में निम्नवर्गीय पात्र के भाषा के अपभ्रंश बना देल जाइत रहै।तहिना विद्यापति भी जन सामान्य के लेल गीत गाना आ उच्च वर्ग के लेल पुरुष परीक्षा लिखनन।वर्ग भेद के आधार पर एहन रचना संस्कृत आ मैथिली साहित्य में पायल जाति अछि।आजुक समय में भी मैथिली के संस्कृतनिष्ठ आ शास्त्रीय भाषा बनाबे के षड्यंत्र चल रहल अछि।जे जन सामान्य साहित्य आ संस्कृति से बंचित रहै।
मिथिला में एते उच्च नीच आ छुआछूत के भाव है कि बाभन दलित वर्ग के आइ तक पूजा पाठ आ संस्कार नै करवैत अछि। दलित के इहां भोजन के सवाले नै अछि।सोलकन के पूजा पाठ आ संस्कार करवैत अछि।परंच आइ धरि सिद्ध अन्न (भात,दाल)भोजन नै करैत अछि।परंच कोरंजाभोजन ( चूड़ा,दही, चीनी, मिठाई आ फल)करैत अछि।
मंदिर में दलित गच्ची (मंदिर के चबूतरा) पर न चढ सकैत रहे।सोलकन मंदिर के गर्भगृह में नै जा सकै अछि। केवल जनेऊधारी जा सकैत अछि।
बंचित समाज के अइसे घबराय कैं नै चाही। कारण मैथिल आ मैथिली भाषी त बंचित समाज भी अछि।अप्पन संस्कृति आ समाज के हित में निर्भय आ नि: संकोच साहित्य सृजन करबाक चाहि।
-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सीतामढ़ी।