बरसों से,,,,,
बरसों से यक्सर* हमारे पीछे है,
अनजाना इक डर हमारे पीछे है,
फिर दरया में रस्ता पैदा कर मौला,
दुश्मन का लश्कर हमारे पीछे है,
हम शाइर हैं वक़्त से आगे चलते हैं
और हर केलेंडर हमारे पीछे है,
जिन लोगों ने चाँद उगाया था घर में,
उन लोगों का घर हमारे पीछे है,
दुश्मन ने तलवार रखी है सीने पर,
यारों का ख़ंज़र हमारे पीछे है,
हर मंज़र से मंज़र गायब है अशफ़ाक़,
ये कैसा मंज़र हमारे पीछे है,
यक्सर=पूरा पूरा
—-अशफ़ाक़ रशीद….