बरसात-सावन लायो संदेस
घिर घिर आयो बदरा लायो पिया संदेस
बिजुरी भी नैनन से देवत मिलन संकेत
मृदु संगीत सी छन छन बरसत जल धारा
टिप टिप की ताल पर थिरकत मन मयूरा
मिश्री सा घुल जात पपीहे का रस गान
रोम रोम धड़कत सुन कोयल की तान
उमड़ घुमड़ गरजत अम्बर बादल कारा
बिजुरी जो चमकत रोमांचित अंग सारा
कंपित अधरों पर बून्दे करत मृदु चुंबन
मोरे मन उमड़त प्यार का भीगा सावन
इस रुत संग होत हरी हरी वसुंधरा
सराबोर मैं प्रेमरस रंग चढ़त गेरुआ
रेखा ड्रोलिया
कोलकाता