बरसात के प्यारे गड्ढे
“बरसात के प्यारे गड्ढे”
(हास्य क्षणिकाएँ)
// दिनेश एल० “जैहिंद”
(१)
गाँव के फेक छोरों से नकचढे
होते बरसात के ये बरसाती गड्ढे
अगर तुम घुस के जाओगे तो ठीक होगा
तुम्हारा ये नया फॉर्मुला दुनिया में हिट होगा
कहीं तुम्हें दूसरी दुनिया का मिल जाए रास्ता
तब वैज्ञानिकों को खूब पड़ेगा तुमसे वास्ता
नासा ससुरे को तुम तो कुछ मत बताना
एलियाईन से मिलकर तुम वहीं मौज मनाना
(२)
प्यारे गड्ढे सड़कों के गुलदस्ते
शोभा बढ़ाते रास्तों का हँसते-हँसते
कभी आर पर तो कभी ठीक बीचो बीच हैं
गड्ढा भी क्या सोचे कि सारे राही बड़े ढीठ हैं
और जैसे तुम निकलोगे बगल से बचके
वैसे आती कार पिचकारी मारेगी सटके
तुम भी क्या याद करोगे बचपन के रंग को
यारों के बीच मनाए गए होली के हुड़दंग को
(३)
सरकार !
जान-बुझकर
नहीं भरवाती इन गड्ढों को !
वो समझती है खूब
अपने स्कूली शिक्षकों को !!
जो श्यामपट्ट पर नहीं
बना पाते होंगे भारत के मैप को !
तभी तो सरकार ने छोड़ रखा है
सड़कों पर बने इन छोटे-बड़े गैप को !!
(४)
ये बरसाती गड्ढे
बच्चों को समझने हेतु कम नहीं हैं !
राह चलते इससे बढ़िया
समझाने के कोई आईटम नहीं है !!
बच्चे सीख तो लें कम से कम
बनाना भारत के नक्शे को !
देख-देखकर सड़कों पर बने
इन कींचड़ से सने उल्टे-सीधे गड्ढे को !!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
जयथर, मशरक, छपरा