बरसात के दिन
बरसात के दिन लगे सुहाने से,
मेघ भी लगे अब आजमाने से।
गिरती बिजलियों की बात न पूछो,
बाज कब आए वे हमें डराने से।
तन-मन पर छा जाता है खुमार,
असली मज़ा तो है भीग जाने से।
घर के द्वार पर बहने लगी नदी देखो,
आया मजा कागज की कश्ती चलाने से।
टिप-टिप बूँदों ने छेड़ दी है सरगम अब,
हम भी लगे गीत कोई गुनगुनाने से।
भूल भी जा बीती जो बातें रहीं,
मिलते हैं ये मन कड़वाहट भुलाने से।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक