बरसात की रात
बरसात की रात
बरसात की बात तुम अब न करो
उस रात की बात तुम अब न करो
समाये थे एक दुजे की बाहों में
बिखरे थे जज़्बात उन राहों में
धड़कनों को संभालते हम कैसे
निकलने वाला ही था दम जैसे
अचानक से बिजली कौंधी थी
मैं तेरी बांहों में बस औंधी थी
पता न चला ,कब रात ढल गई
सुबह होते ही जिंदगी बदल गई
कल तक जो प्यार इबादत सा था
एक रात के बाद ज़लालत सा था।
मारो दोनों को आवाजें आने लगी
बदचलनी का पाठ सुनाने लगी।
“हमारे घरों में भी बहू बेटियां हैं”
जिगर हमारे की जो बोटियां है।
“ठहरो,रूको बताता हूं मैं
सारी बात समझाता हूं मैं”
छुप कर खड़ी थी मैं तेरे पीछे
सोच रही थी ,किये नजरें नीचे
ऐसा क्या हमने गुनाह कर दिया
इज्जत को कैसे फना कर दिया?
मां बाप तेरे मेरे भी वहां थे आये
चुप थे जमीं पर नज़र गड़ाए।
मार दो ,मार दो की आवाजें आई
एक सख्त आवाज ने सब दबाई।
“बच्चे मोहब्बत करते हैं दोनों
क्या गुनाह करते हैं दोनों?
“बात मोहब्बत की नहीं है बाबा
ये जाती है काशी,वो जाये है काबा””
बात बाबा को अब समझ आई
हिन्दू मुस्लिम नाम के भाई भाई।
दंगों के लिए भीड़ आमादा थी
होश कम और जोश ज़्यादा थी।
बरसात राजनीति की होने को थी
खून से वस्त्र सब के भिगोने को थी।
अचानक से बाबा को ख्याल आया
जल्दी से क़ाज़ी और पंडित बुलाया।
फेरे दिलाये,निकाह भी पढ़वाया।
पक्की शादी का सबूत बनवाया।
उसमें उन्होंने बस ये करवाया
धर्म का नाम इंसानियत लिखवाया।
पढ़ कर ऊंचा लोगों को सुनाया।
सब ने था फिर सर को झुकाया।
बरसात में ऐसा था फरिश्ता आया।
प्यार की बूंदों से सब को नहलाया।
सुरिंदर कौर