बरसाती विरह
दुर्मिल सवैया में 24 वर्ण होते हैं। छंद के पद आठ सगणों यानि सलगा यानि लघु लघु गुरु या ।।ऽ से बनते हैं।
यानि, दुर्मिल सवैया = सगण X 8
अर्थात, सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण
या, ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
छंद – ०१
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बदरा बरसे जियरा तरसे, अब देख दशा तुम आज पिया।
दिन-रात सहूँ पदचाप गहूँ, बिन आप पिया घबराय जिया।
सुख-चैन गया अरु नींद गई, अब आज करूँ किससे बतिया।
मन चाहत है पर आहत है, तुम आन मिलो धड़के छतिया।।
छंद – ०२
बदरा बरसे बिजुरी चमके, उठती उर में मम हूक पिया।
कजरा तरसे हियरा हहरे,सरके चुनरी बस में न जिया।
खनके कँगना हिय ढूंढ रहा, अब आन मिलो मन के बसिया।
घनघोर घटा गरजे बरसे, बिनु साजन फूट गयो भगिया।।
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’