*सूने घर में बूढ़े-बुढ़िया, खिसियाकर रह जाते हैं (हिंदी गजल/
सूने घर में बूढ़े-बुढ़िया, खिसियाकर रह जाते हैं (हिंदी गजल/गीतिका)
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(1)
सूने घर में बूढ़े-बुढ़िया, खिसियाकर रह जाते हैं
पढ़े-लिखे सबके बेटे अब, परदेसी कहलाते हैं
(2)
कभी चमक आती चेहरे पर, क्षण भर में मुरझाते हैं
काबिल हैं बेटे यह बातें, जब सबको बतलाते हैं
(3)
थका हुआ तन चाह रहा, लाठी का एक सहारा
लेकिन यह सौभाग्य कहाँ, सबके हिस्से में आते हैं
(4)
गली-मौहल्ले के जर्जर घर, हैं इतिहास समेटे
आशा के दीपक दो बूढ़े, उनमें रोज जलाते हैं
(5)
एक अकेला हंस रह गया, अब भारी दुश्वारी है
तीजा-दसवाँ हुआ रजिस्ट्री, अब घर की करवाते हैं
(6)
समझौते करने पड़ते हैं, अंतिम दशक बिताने में
जैसे हों सामान स्वयं को, ऐसे शिफ्ट कराते हैं
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तीजा-दसवॉं = मरणोपरांत होने वाली शोक सभाएं- संस्कार आदि
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451