बदल जाओ या बदलना सीखो
बदल जाओ या बदलना सिखो –
बदल जाओ या बदलना सीखो
मंजिल से पहले ना रुकना सीखो।।
औकात खुद का जानना सीखो औकात मेहनत की मस्ती है ईमानदारी का ईमान कर्म पूजा सिंद्धांत पर चलना सीखो।।
खुद पे भरोसे कि दौलत दुस्साहस नहीं साहस का सोपान बनाना सिखो।।
शब्द कर्म में भेद विभेद नहीं
कथनी करनी में अंतर ना हो
वचन निभाना सिखों दिल दिमाग संतुलित संयमित क्रोध द्वेष को त्याग सीखो।।
आचार व्यवहार आचरण का
आदर्श आधार बनाना सीखो।।
तजुर्बा तालीम हथियार अहम स्व का त्याग औकात बनाना सीखो।।
मकसद ना हो खुदगर्जी मकसद ना हो मतलब स्वार्थ समय समाज राष्ट्र जिससे पहचान मकसद में हो साथ।।
मकसद पर ध्यान लगाना सीखो
मकसद औकात हो बेखौफ बेलौश बेबाक लम्हा लम्हा मकसद और जीवन जीना सीखो।।
जिंन्दगी के दिन चार दो रात के अंधेरो के दो सुबह नए शौर्य सूर्य
के साथ दुनियां का नव सूर्योदय
विश्वाश आश बनाना सीखो।।
वक्त की कीमत वक्त बदलना
सीखो ना हो बोझ समर्थ सोच
बनाना सीखो ।।
सयम संकल्प का कदम कदम विकल्प नहीं कोईं संकल्पों की यज्ञ आहुति करना सीखो।।
हुजूम में भी तन्हा एक चिराग
हुजूम की कारवाँ मंज़िल का
दिया चिराग मशाल सा जलना सीखो।।
एकला चलों कारवाँ के बागवाँ
बनना सीखो।।
ईश्वर अल्ला गुरु जीजस , पैगम्बर तुझमे तेरे अंदर खुद में इनको खोजो इनमे ही इनसे ही दुनियां देखो ।।
जख्म दर्द हो चाहे जितने
दुनियां के दर्दे गम जख्म
का मरहम बनना सीखो।।
ताकत का मतलब जानो
ताकत का सदुपयोग करना
सीखो मौका धोखा का फर्क समझना सीखो ।।
गुरुर नहीं जज्बे का जूनून कुछ
कर गुजरने का सुरूर वर्तमान
के कदमो से प्रेरक इतिहास
बनाना सीखो।।
जिंदगी रहम नहीं रहमत का रहीम करीम सा दुनियां में
जीना सीखो।।
चाहत जो भी हासिल कर पाओगे
अवनि के अवतार इंसान तुम
सिद्धार्थ से बुद्ध का सत्यार्थ तुम
प्रमाणिकता प्रमाण तुम ।।
पुरुष पराक्रम का परिधान धारण
करना सिखों ,धुँआ नहीं लपटो जैसा जलना सीखो।।
तुफानो सा चलना होगा
किस्मत की अनचाही लकीरो
मिटाना होगा तेरी आहट दुनियां
नई जिंदगी जमाने का बयां अन्दाज़ करना सीखो।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।