बदल गया इंसान
सतयुग बीता, त्रेता बीता, द्वापरयुग भी बीत गया ।
धीरे-धीरे मानव मन भी मानवता से रीत गया ।
आज वो अपने स्वारथ हेतु रिश्ते नाते भूल गया ।
मात पिता ने लाड़ प्यार से पाला पोसकर बड़ा किया ।
पढ़ा लिखाकर उनको अपने पैरौं पर खड़ा किया ।
लगा कमाने बेटा , अब न मात पिता को आश्रय दिया ।
सेवा तो कुछ किया नहीं , उनको वृद्धाश्रम भेज दिया ।
एक राम था जिसने पितृ आज्ञा से चौदह वर्ष वनवास लिया ।
खाकर वन के कंद मूल फल , दुष्टों का संहार किया ।
आज के राम ने जनक औ जनता के भरोसे का संहार किया ।
हे ” ओम ” तू कितना बदल गया है , इंसानियत को भूल गया ।
ओमप्रकाश भारती ” ओम् “