बदरिया ओ बदरिया अब तो बरसो मेरे देश
बदरिया ओ बदरिया अब तो , बरसो मेरे देश ।
बूँद-बूँद को तरसी धरती,तरसे हैं परिवेश ।।
तपती सड़कें तपते घर हैं तपते भवन अनूप
सूखी नदियाँ सूखे पोखर सूख गये हैं कूप
झुलसे तरुवर झुलसी पाती झुलसे इनके रुप
खेती क्यारी पूछ रही क्यों मेघा गये विदेश ।।
बदरिया ओ बदरिया ……….. ।।
संग लहू के चले पवन है कुछ कर सके न भूप
जनता करती त्राहि-त्राहि जब लगती तीखी धूप
तेज ताप से चढ़ता पारा छीने रुप अनूप
पेड़ लगाओ नीर बचाओ वांचे सब उपदेश।।
बदरिया ओ बदरिया………… ।।
मन्द सुगन्ध चले पुरवाई बैरिन बोले झूठ
उड़े मेघ सब बिन बरसे ही गये बे वजह रुठ
हुई त्रषित कण-कण धरती माँ पीकर सूखे घूँट
दे जाओ अंजुरी भरि ही जल भेजे भू सन्देश.।।
बदरिया ओ बदरिया……… ।।
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डॉ. रीता सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
राजनीति विज्ञान विभाग
एन. के. बी. एम. जी. पी. जी. कालेज – चन्दौसी
जनपद – सम्भल(उ.प्र.)