बता ऐ ज़िंदगी मेरी खता क्या
बता ऐ ज़िंदगी मेरी खता क्या
मुझे गम के सिवा कुछ भी मिला क्या
ज़रा सी बात पर ही छोड़ दे जो
भला उससे रखें कुछ राबता क्या
जहाँ दो और दो भी पाँच होंगे
वहाँ उन जाहिलों का कुछ हुआ क्या
जुबाँ खामोश आँखें बह रही हैं
बताओ तुम किसी ने कुछ कहा क्या
मिला है दर्द सबको आशिकी में
बिना इसके मुहब्बत का मज़ा क्या
जिसे देखा वो उसका हो चला है
कहाँ मालूम उसको है वफ़ा क्या
दुआओं में रखा कर याद ‘सागर’
नज़र से भी गिराने में अना क्या