“बढ़ अकेला, चल अकेला”
“बढ़ अकेला, चल अकेला”
================
बढ़ अकेला, चल अकेला,
आया है जग में तू अकेला ,
बढ़ अकेला, चल अकेला।
तू वांट ना देख किसी का,
पांव नित्य आगे बढ़ा,
हो न हताश ,विपरीत काल,
यह है एक पावन वेला,
बढ़ अकेला, चल अकेला।
निज पर कर भरोसा,
साहस ना छोड़ तू,
वसुंधरा का श्रृंगार तू,
जगा एक अलख श्रृंखला,
बढ़ अकेला, चल अकेला।
तू कर्मवीर, तू धैर्यवान,
तू सदा निर्भीक, तू बलवान ,
तू ध्यान कर अवसर की व्यथा,
देख युग की विस्तृत रूप-रेखा,
बढ़ अकेला,चल अकेला।
आया है जग में तू अकेला,
बढ़ अकेला, चल अकेला ।।
~वर्षा( एक काव्य संग्रह)/राकेश चौरसिया