बड़ी खस्ता जा हालत किसान की
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लोकगीत
बड़ी खस्ता जा हालत किसान की।
खेत और खलिहान की।।
मँहगो मिल रहो डीजल खाद।
तुषार लगे हैं बाके बाद ।
कर्जा में हो गए बर्बाद ।
सबरे बैठे और सोचें तुकतान की।।
खेत और खलिहान की।।
बड़ी खस्ता —–
खेती नईंं होवे बिन साधन।
कैसे पूंजी लगाबें निर्धन।
भैया धन को खींचतहै धन।
बिगड़ी हालत अब निर्धन, धनवान की।।
खेत और खलिहान की।।
बड़ी खस्ता——
नहीं मिलते हैं अब मजदूर।
नहीं होती है हुजूर -हुजूर।
टूट गयो है सबको गुरूर।
कीमत बढ़ गई है धोती बनियान की।।
खेत और खलिहान की।।
बड़ी खस्ता —-
सबरे सुन लो खोल के कान।
बिल्कुल ने होवे सम्मान।
अब मत करियो तुम तो दान।
महंगाई में ये बात है ईमान की।।
खेत और खलिहान की।।
बड़ी खस्ता —–
कैसे चुक है तुमरी उधारी।
सोच बड़ी है मुश्किल भारी।
हमने कह दई तुमरी बारी।
अपनी सोचो और छोड़ो जहान की।।
खेत और खलिहान की।।
बड़ी खस्ता —-
खेत और खलिहान की।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा
जिला नरसिंहपुर (mp)