बच्चों बिना स्कूल
बच्चों के बिना स्कूल
जैसे खुशबू बिना फूल
जैसे शीशे पे जमीं धूल
जैसे नदी का सूखा कूल।
न धक्का- मुक्की की रेल
ना झगडा कोई ना मेल
न शोर शराबा ना कोई खेल
जैसे दीपक कोई बिन तेल!
कोई शिक़वा कोई शिकायत नहीं
लडाई – झगड़े की पंचायत नहीं ,
पढ़ने -पढ़ाने की कवायत नही
तंग करने वाली शरारत भी नहीं।
हँसी की खिलखिलाहट नहीं
दौड़ने भागने की आहट नहीं,
गर्मजोशी की गरमाहट नहीं
बच्चों बिना स्कूल की सजावट नहीं!
कोरोना वायरस की हो स्थाई छुट्टी,
मजबूरी से न बंद करने पडें ,खुले रहें स्कूल।।
खेमकिरण सैनी
13.3.2020