***बच्चा***
***बच्चा***
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जब भगवान अनन्य सी कृति रचाये,
निज का ही साकार प्रतिरूप बनाये।
सकल गुण ईश्वर के से उसमे समाये,
समझलो भगवान एक बच्चा बनाये।
बेनूर सी जिन्दगी मे चार चांद लगाये,
खुशियो के चंद दीप पग पग सजाये।
आशाओ की कोई नई किरण जगाये,
जब कोई शिशु आने की आहट पाये
मां के आंचल में बच्चा खिलखिलाये,
मानो गडे खजाने कोई मिल से जाये।
पिता बच्चे को नित नये खेल सिखाये,
लगता शीश पर कोई ताज पहरा जाये।
जब तुतला-तुतलाकर आवाज लगाये,
कुछ अपनी नटखट अदाओ से रीझाये।
ठुमक ठुमककर जब निज नाच दिखाये
जिसे देख मां का रोम रोम खिला जाये।
जब आंगन मे छम छमकर दौड़ लगाये,
ब्रज के हरि सी हर मोहन अदा दिखाये।
देखे पत्थर दिल भी बाग बाग हो जाये,
हृदय के कोने कोने मे नई उमंग जगाये।
जब बच्चा कोई खुलकर खिलखिलाये,
हंसी यह सुन संगीत समुद्र भी शर्माये।
लय ताल सब उसके मंद मंद पड जाये,
“निश्छल” हंसी पर निज सर्वस्व लुटाये।
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✍️प्रदीप कुमार निश्छल