बचपन तेरा जीवन सार सिखाता है
बचपन तेरा बच्चा बनकर, मुझको बहुत भगाता है
जो तुतलाकर बोले माँ तू, दिल मेरा भर आता है।
तेरा ठुनक ठुनक कर चलना, चार कदम पर गिर जाना
देख नींव का कदम वो पहला, मन मेरा इठलाता है।
छोटी-छोटी दो आँखों से, दुनिया को तू पहचाने
चमकीली आँखों का सपना, तेरा बहुत सुहाता है।
नन्हें दो हाथों से आँचल, पकड़े तू जो शरमाये
आँख मिचौली खेल सुहाना, सबका दिल बहलाता है।
भैया के सब खेल खिलौने, लगते हैं तुझको प्यारे
भैया से जब हुई लड़ाई, आँख दिखा गुर्राता है।
दादा-दादी, नाना-नानी, तेरे हैं संगी साथी
चन्दा मामा, देखो सूरज चाचा ही कहलाता है।
जबसे आया तू जीवन में, जीवन मेरा बदल गया
तेरी पल पल की शैतानी, जीवन सार सिखाता है।
हरदम यूँ ही हँसते रहना, बचपन को ना तुम खोना
खूब पढ़ो, कल बड़े बनो तुम, माँ का मन हर्षाता है।
लोधी डॉ.आशा ‘अदिति’
बैतूल