बचपन के दिन
७)
” बचपन के दिन ”
बचपन के दिन वो
थे कितनी सुहाने
वो मस्ती,वो अल्हड़पन
वो गाते-फिरते मस्त तराने।
मैदानों में जाकर वो
कबड्डी,खो-खो खेलना
कंचे,कैरम,लूडो का खेल
खेल-खेल में फिर झगड़ना।
वो बारिश के पानी में
मस्त हो नहाना ,नाव चलाना
गाँवों की कच्ची सड़कों पर
कीला फ़ेंक-फेंक गाड़ना ।
वो पेड़ों के नीचे से
सफ़ेद फूलों को समेटना
सुंदर सी वेणी बना कर
अपनी टीचर को दे देना ।
घर की दीवारों पर वो
गोबर से संजा उकेरना
उसे सजाने की ख़ातिर
सिगरेट के चमकीले काग़ज़ ढूँढना।
वो फुग्गे फूला-फूलाकर फिर
उसे फोड़ सबको डराना
वो चोरी छुपे जाकर खेतों में
बैर-इमली रस ले-लेकर खाना।
वो बैल गाड़ी की सवारी
और घोड़े गाड़ी का मज़ा
वो प्यारी सुबह,वो रंगीन शाम
और ख़ूबसूरत सी फ़िज़ा ।
वह गुल्ली-डंडा और सितोलिया
वो गुड्डा-गुड्डी से घर-घर खेलना
छिपम-छाई में इशारों से बता
फिर चुपके से जा पकड़ना ।
क्या लिखूँ और क्या छोड़ूँ
समझ न आए मुझको
बचपन की यादें हर वक़्त
बचपन में ले जाए मुझको।
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता, इंदौर