बचपन की सुनहरी यादें…..
न सुबह की फ़िक्र थी न शाम का ठिकाना
पिताजी कीं डाँटो में, माँ का आशियाना था
मस्तमौला सा जीवन और भोले से मन में
ना ही खुशी देर रहती ना गम देर रहता था
जब आती है वो यादें तो सकुन दिलाती है ।
तनाव भरे चेहरे पर ख़ुशी का पल दे जाती हैं ।।
मित्रों से लड़ना, मिलना और फिर रूठ जाना
फिर गलतियों को दोहराना, न याद रहता था
कागज़ की नावों में और दौड़ते नंगे पाँवों में
सपनों में आकाश छूने के न भाव रहता था
ठहरी सी जीवन में रिश्ते की याद दिलाती है ।
तनाव भरे चेहरे पर ख़ुशी का पल दे जाती हैं ।।
लट्टू, गोली, गिल्ली-डंडे और पिट्टो में फसाना
न रोने की कोई वजह न हंसने का बहाना था
अपने धुन की रवानी में न खिलौने की चाहत
दादा-दादी के किस्सों में जीवन का सबक था
मित्रों संग चुसे गन्ने की मिठास याद आती है।
तनाव भरे चेहरे पर ख़ुशी का पल दे जाती हैं ।।
ज़िन्दगी के सफ़र ने बहुत कुछ सीखा दिया
अधरों पर एक बनावटी मुस्कान थमा दिया
खुल कर हँसना भी चाहे तो हम हँस ना सके
ऐसे घुटन सी सभ्यता का पाठ पढ़ा दिया
तमन्नाओं की डोरी में खुशियों की पतंग उड़ाना
बचपन के सुनहरे लम्हों की बस याद आती है ।
तनाव भरे चेहरे पर ख़ुशी का पल दे जाती हैं ।।
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