बचपन की यादे —आर के रस्तोगी
मत दिलाओ बचपन की यादे, वह खूब याद आता है |
पुरानी बाते याद करके,वह बचपन लौट कर आता है ||
एक आने में चार जलेबी दो कचोडी में नाश्ता कर लेते थे |
सौ दंड बैठक पेल कर हम, एक किलो भी दूध पी लेते थे ||
खेलते थे गिल्ली डंडा गलियों में बढ़ई से गिल्ली बनवाते थे |
गिल्ली अगर नाली में गिर जाये,उसको भी निकाल लेते थे ||
बनाते थे गुज्जी खेल के मैदान में गुल्ली डंडा खेलने के लिये |
खड़े हो जाते विरोधी टीम के खिलाडी,गिल्ली को कैच के लिये ||
चढ़ जाते थे ऊँची छतो पर,खूब रंग बिरंगी पतंग उड़ाते थे |
काट देते जब किसी की पतंग,तब जोर जोर शोर मचाते थे ||
भागते थे कटी पतंग के पीछे,लेकर हाथ में लम्बे बांस के डंडे |
फसा लेते थे पतंग मांजे डोर को, बना कर बड़े बड़े लम्बे फंदे ||
चले जाते थे नानी के घर ,जब पड़ती थी गर्मियों की छुट्टियाँ |
खिलाती थी नानी हमे बना कर, लड्डू गर्म,पूड़ी और सूटिंयां ||
खेलते थे कन्चे व गोलिया.घर के बराबर लम्बी गलियों में |
देख लेते थे जब पिताजी हमको छिप जाते थे गलियों में ||
खेलते थे आँख-मिचौनी पट्टी बाँध कर एक दूसरेको ढूढ़ते थे |
लगता थे जिसको पहले ठप्पा,उसकी आँखों में पट्टी बांधते थे |
आर के रस्तोगी
मो 9071006425