बंधन
बंधन
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ये कैसा बंधन है प्रियवर?
कैसा ये प्रेम भी होता है?
दिखता जब मेहबूब नहीं,
दिल सूना सूना रहता है।
जब याद तुम्हारी आती है
प्रेम प्रस्फुटित होता है,
तब तेरे मेरे बीच प्रिए
कुछ खास घटित होता है।
इन भोली भाली आंखो का
अंदाज़ ए बयां क्या कहिए
मिलती है जब भी आंखे तो
इजहार ए मोहब्बत होता है।
तीर ए नजर से अपने तुमने
घायल मुझको कर डाला
दिल का घायल बेचारा
अब राह तुम्हारी तकता है।
नज़रों के जितने भी तीर चले
सीधे ही जिगर पर खाएं हैं,
वो आशिक भी आशिक कैसा
जो हुआ ना घायल नज़रों से।
कुछ तुमने मुझसे कहा नही
मैंने भी तुमसे कुछ नही सुना,
राज की सारी बातें तो बस
निगाहों से बयां अब होती है।
आंखों ही आंखों में पढ़कर
जीवन का बेड़ा पार किया,
कुछ और तुम्हे याद आए तो
नज़रों से बयां तुम कर देना।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट ( मध्य प्रदेश)
स्वरचित और मौलिक