बंद होके लिफाफे में,घर आ जाया तो करो …
रश्मे ख़त कभी कभी निभाया तो करो ,
बंद होके लिफाफे में,घर आ जाया तो करो …
खुद ही सरका दो पह्लू ,हसीन ज़ानो से,
घबरा कर फिर,दांतों तले उंगुलिया दबाया तो करो .
हमको भी अपनी हदों का कुछ एहसास तो हो,
पास बुलाकर कभी आजमाया तो करो .
मैं तुम्हारा ,तुम मेरा सहारा हो तो सही,
शरमा कर कभी बाहों में पिघल जाया तो करो .
कौन कहता हैं यु न बद्लेगे हालाते हाल,
दिल में इंकलाब की शमा जलाया तो करो .
इतनी भी मुशकिल नही,बग़ावत और इंसाफ की जिद ,
तबीयत से कभी कलम उठाया तो करो .
वकत का ये मरहम ,हर जख्म भर ही देता हैं ,
मेरे सिवा कही दिल लगाया तो करो .
बंद होके लिफाफे में,घर आ जाया तो करो …….