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3 Jul 2024 · 2 min read

फेसबुक वाला प्यार

शरारती हवा और तेज हो रही बारिश के बूँदों की थाप रात के सन्नाटे में तेजी से फैल रहा था और मैं अपने बालकनी में बैठे अकेलेपन से गुप्तगुह कर रहा था।

छोटा सा घर, छोटा सा दिल और सिमटी हुई जिंदगी,,,,किसी गहरे विचार में खोया हुआ था। मुझे तो यह भी ज्ञात नहीं की हवा के इशारे पर कब से बारिश की बूंदे मेरे वस्त्र को अपने शरारत से गीला कर रहा था।

“””ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग””” कॉल बेल की आवाज पर मैं अपने विचारों के कशमकश से बाहर आया और भारी कदमों से चलकर दरवाजा खोला। पर जैसे ही मैंने दरवाजा खोला आश्चर्य से मेरी आंखें चमक उठी,,,,, क्योंकि जिन विचारों मे मैं खोया हुआ था वही विचार यथार्थ के रूप में मेरे सामने प्रस्तुत था।

“तुमने बताया क्यों नहीं” मैंने पूछा।

“सरप्राइज” उसने कहा और धीरे से मेरा हाथ थाम लिया,,,,,,,समुंदर में मिल जाने के इंतजार में बरसों से मैदानी नदी की तरह बहते हुए दो आंखें धीरे-धीरे एक दूसरे के गहराई में उतरने लगे

फेसबुक पर शुरुआत से लेकर अब तक,,,,,,, जिंदगी तो जैसे अभी-अभी शुरू ही हुई थी। पहाड़ी झरने जैसी सुबह उठते ही उसकी मुस्कुराती हुई “सूरत” दिन भर उसकी आवाज की “खनक” और रात में उसके प्यार का “एहसास” दूर होते हुए भी कम नहीं था।

अब तक तो मैसेज और कुछ छोटे-बड़े कॉल ही एक माध्यम था एक दूसरे के लिए प्यार जताने का,,,,,,,परंतु एक दूसरे में आत्मसात होना किसी भी प्रकार से शेष नहीं रह गया था।

“आई लव यू” गले लगा कर उसने कहा
मैनें भी जवाब में उसके कंगन से खेलते हुए धीरे से उसके कानों में कहा तो वह हाथ खींच कर अलग हो कर बैठ गई।

झुककर मैंने दोबारा उसकी कलाई थाम लिया,,,,,ऐसे कैसे पहली ही मुलाकात में मैं उसे अपने से दूर जाने देता। उसे यह अहसास भी तो दिलाना था कि “रिश्ते यूँ हाथ छुड़ाने से अपनी गर्माहट खो देते हैं”।

मैं हौले-हौले उसके हाथों की उंगलियाँ सहलाने लगा किंतु वह एक बार फिर से सिमटने लगी। तब मैंने उसकी भीगी जुल्फों को चेहरे से हटाकर उसकी आंखों में झांका और अपनी ओर खींच लिया।

इस बार वो धीरे से मुस्कुराई और प्यार से अपने होठों को मेरे होठों के करीब ले आई। वह तो चुप थी लेकिन उसकी कसमसाहट मैं भली-भांति महसूस कर पा रहा था।

नदियों के भाँति समंदर में मिलने को बेताब कब से बेचैन हम दोनों अपनी तपती गर्म सांसों से पिघल कर एकाकार हो गए।

“बारिश खत्म होने को है” उसने ने धीरे से अपनी आंखें उठाकर मेरी आंखों में झांकते हुए अलग होने का इशारा किया।

“पर प्यार का मौसम तो अभी-अभी शुरू हुआ है” मैंने कहा और पुनः अपनी बाहों में भर कर अपने चेहरे को उसके सीने में छिपा लिया…

हमारे होठ मिल गए…मेरी हथेलियाँ उसके वक्ष स्थल को सहलाने लगी… सांसों की गर्मी से ज़िस्म मोम सा पिघलने लगा… हमारा वर्षों का अधुरा प्यार जैसे एकाकार हो रहा था।
– के के राजीव

Language: Hindi
47 Views
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